हरियाली | Newsforum
©नीरज सिंह कर्दम, बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश
परिचय- शिक्षा – 12th, रुचि – कविता लिखना, अवार्ड- डॉ भीमराव आंबेडकर नेशनल फेलोशिप राष्ट्रीय अवार्ड 2019, डॉ. भीमराव आंबेडकर नेशनल फेलोशिप राष्ट्रीय अवार्ड 2020-21 के लिए चयनित.
हरियाली का कभी होता था डेरा
जंगल और खूब अंधेरा,
जानवरों की दहाड़, पक्षियों का डेरा था
आज वहां पर लगी है फैक्ट्रियां।
आसमां भी बिना पक्षियों के अब सूना लगता है
उड़ते पक्षी अब गिर जाते हैं
जब फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित
धुआं के संपर्क में आते हैं ।
हो रही है नदियां भी अब प्रदूषित
पीकर जानवर उस पानी को
दम तोड़ देते हैं नदियों के किनारे
पीने योग्य कहां रहा अब नदियों में पानी ।
हरियाली अब खत्म हो रही है
बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां जगह ले रही है,
हरे भरे जंगल की इंसान ने ले ली रेड
काट दिया सब जंगल, सूखा छोड़ा पेड़ ।
बहती थी जहां नदियां, आज वहां पर नाला है
इंसान ने अपने स्वार्थ के लिए क्या कर डाला है
सोना उगलती भूमी को बंजर बना डाला है
नष्ट कर हरियाली को, व्यापार खूब बढ़ाया है ।
मत करो नष्ट अब पर्यावरण को
जीना मुश्किल हो जाएगा
हरियाली पर मत करों अब प्रहार
प्रकृति चीख चीखकर कहती है ।
लगाओ वृक्ष अधिक, जीवन अपना बचाना है
एक हरा भरा जंगल फिर से बनाना है,
मेघ बरसेंगे, पानी भी बचाना
मत करो प्रहार हरियाली पर, जीवन अपना बचाना है ।