थोड़ा-थोड़ा हम…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
तुम्हारी यादों की महफिलों में दिन ये गुज़र रहे है,
कभी ख़ुशी की कभी गमों की नज़्म हम गा रहे है।
चेहरे पे हंसी और अंदर से हम देखो जल रहे है,
और देखने वाले कहते है खुशियां हम मना रहे है।
टूटे हुए अरमानों से ही ये जिंदगी हमने सजाई है,
गमों से ही करके दोस्ती नई आशाएं हमने जलाई है।
मुश्किलों से लड़ते-लड़ते हम भी यहां टूटकर बिखरते है,
ऐसी पतझड़ आने के बाद भी,हम फिर से नई बहार बनके उभरते है।
सभी को लगता है,हमारे ही आंगन में खुशियों का मेला है,
आग ही आग है दिल में और आप ने तो हंसता हुआ चेहरा देखा है।
हारकर कैसे रूक जाएं,ये जिंदगी तो और भी बाकी है,
कभी ख़ुशी कभी ग़म,यही तो जिंदगी की नई झांकी है।
तुम्हारी यादों की महफिलों में दिन ये गुजर रहे है,
गमों का कारवां लिए संग,थोड़ा-थोड़ा हम बिखर रहे है।
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