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ऑनलाइन बुलेटिन : अनदेखी वो तस्वीर…

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र


 

आपके लफ़्ज़ों को पढ़ते-पढ़ते कोई अंजान तस्वीर सामने आती है,

ये बेचैन निगाहें अब मेरी आपके दीदार को तरसती है।

 

अनदेखी वो तस्वीर तुम्हारी क्युं हमें इतना तड़पाती है,

आपके लफ़्ज़ों में डुबकर भी ये प्यास और क्युं बढ़ जाती है?

 

लफ़्ज़ों के प्रीत में ही जीना तुम सीख जाओ,

प्रीत में हुई जख्मों पर यहां कोई भी मरहम नहीं है।

 

कई जख्मों से भरा है ये दिल भी किसी की यादों में,

फिर तुम्हें क्या मिलेगी राहत,ऐसे गमों के समंदर में।

 

जो भी लिखा है मैंने आज तक,ये मेरे दिल की तड़प है,

कैसे दिखाएं तुम्हें,ये मेरी रूह भी कितने अश्क बहाती है।

 

वो हर लफ्ज़ आपका,मैंने दिल में समाए रखा है,

जैसे उन्हीं लफ़्ज़ों से ही,अब ये दिल मेरा हरपल धड़कता है।

 

सिर्फ यही इक आरजू है मेरी,कभी आपका दीदार तो हो जाए,

आपके लफ़्ज़ों में जो है ये गहराई,उसी गहराई की जुस्तजू तो हो जाए।

 

आपके लफ़्ज़ों को पढ़ते-पढ़ते कोई अंजान तस्वीर सामने आती है,

ये बेचैन निगाहें अब मेरी आपके दीदार को तरसती है।

 

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