दफन | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©बिजल जगड
पलकों के किनारे अब तो आ गए आंसू,
सिसक रही चिंगारी राख के ढेर के नीचे।
लफ्जों में रोशनी ये जुगनू कहां से आए?
चराग की लो जलती रहे अंधेरों के नीचे।
एहसास के रग में खार-ए-गम की उल्फत,
हर ज़ख्म का मरहम मिले दर्द के नीचे।
झील सी तन्हाई और मोहबत की रोशनी,
अजीब अहद है धुआँ धुआँ शमा के नीचे।
गम वो लफ्जों में अब कहां बयान होंगे,
मेरे अफसाने है सारे दफन ज़बाँ के नीचे।