.

मूलनिवासी बहुजन समाज वैज्ञानिक सोच अपनाते हुए रोटी-बेटी का संबंध बनाकर जातियों की बेड़ियां तोड़ सकेगा – संजीव खुदशाह | newwsforum

©संजीव खुदशाह, रायपुर, छत्तीसगढ़     

लेखक देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं और प्रगतिशील विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। “सफाई कामगार समुदाय” एवं “आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग”, “दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल” आपकी चर्चित कृतियों में शामिल है। आपकी किताबों का मराठी, पंजाबी, ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

लेखक परिचय :- जन्म 12 फरवरी 1973 को बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ। शिक्षा एमए, एलएलबी। आप देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं और प्रगतिशील विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। आपकी रचनाएं देश की लगभग सभी अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकीं हैं। “सफाई कामगार समुदाय” एवं “आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग”, “दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल” आपकी चर्चित कृतियों में शामिल है। आपकी किताबों का मराठी, पंजाबी, ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। आपकी पहचान मिमिक्री कलाकार और नाट्यकर्मी के रूप में भी स्थापित है। छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन से निबंध विधा के लिए पुर्ननवा पुरस्कार सहित आप कई पुरस्‍कार एवं सम्मान से सम्मानित किए जा चुके हैं।

E-mail- sanjeevkhudshah@gmail.com


सोशल जस्टिस एंड लीगल फाउंडेशन छत्तीसगढ़, इस हफ्ते का साप्ताहिक वेबीनार- फ्राइडे क्लास में इस हफ्ते की फ्राइडे क्लास को संबोधित करते हुए सफाई कामगार समुदाय, दलित चेतना और कुछ जरूरी सवाल, भारत में पिछड़ा वर्ग जैसी पुस्तकों के लेखक जाति उन्मूलन आंदोलन के पूर्व अध्यक्ष तथा मूलनिवासी विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता संजीव खुदशाह ने बताया कि जाति की कल्पित व्यवस्था को बनाए रखने के लिए हमारे अंधविश्वास, पुरुष सत्तात्मक समाज और संपत्ति के समीकरण प्रमुख कारक हैं।

 

उन्होंने वर्तमान समय में जारी जातियों की विषमताओं का उल्लेख उदाहरण सहित किया और बताया कि जातियों की अवधारणा किस प्रकार मूलनिवासी बहुजन समाज को गहराई से प्रभावित करती है। उन्होंने जातियों को विशुद्ध रूप से एक अंधविश्वास करार दिया और बताया कि शोषण के टूल के रूप में किस प्रकार जातियों की उत्पत्ति करने वाला वर्ग इसे शोषण करने के लिए इस्तेमाल करता है।

 

उन्होंने महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने और बराबरी का दर्जा दिए जाने को जाति व्यवस्था को तोड़ने के लिए एक आवश्यक कदम बताया। विद्वान वक्ता ने मूलनिवासी बहुजन समाज में वैज्ञानिक सोच विकसित करने तथा धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों के रूप में जड़े जमाए बैठे अंधविश्वास को दूर करने बुद्धिजीवियों को आगे आकर पहल करने की अपील की।

 

उन्होंने लैंगिक असमानता को दूर करते हुए महिलाओं को आजादी दिए जाने की वकालत की। अपने 1 घंटे के सारगर्भित उद्बोधन में उन्होंने मूलनिवासी बहुजन समाज के विभिन्न समुदायों के बीच अंतर, जाति तथा अंतर धार्मिक विवाहों के लिए जोर दिया। उन्होंने कहा कि जाति और धर्म को हमें आपस में बांटने के लिए औजारों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

उन्होंने अंतरजाति विवाह के लिए लड़के तथा लड़कियों के परिवारों को आगे आकर आपस में सामाजिक रिश्ते मजबूत करने के लिए कहा। उन्होंने लड़के लड़कियों की उच्च शिक्षा पर जोर दिया और अपने पैरों पर खड़े होने के बाद विवाह करने का फायदा गिनाया। मुख्य वक्ता ने आजकल आयोजित किए जा रहे विभिन्न सामाजिक परिचय सम्मेलनों को अंतरजातीय विवाहों के परिचय सम्मेलन के रुप में किए जाने का अनुरोध किया।

 

इस वेबीनार में जुड़े लोगों ने बड़ी संख्या में अपने सवाल रखें तथा कई साथियों ने जाति तोड़ने के लिए अपने सुझाव भी सामने रखें। डीएल भारती ने सवाल पूछा कि पुरानी परंपरा को त्याग कर नई वैज्ञानिक तथा संविधान सम्मत रीतियों को अपनाने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?, खेमराज झारिया, आदेश रवि, भंवर लाल, शैलेश विद्रोही, डॉ. एचएन टंडन, प्रेमदीप कुर्रे आदि साथियों के द्वारा भी इस आनलाइन विचार-विमर्श में सवाल पूछे गये और अपने विचार रखते हुए भागीदारी की गई।

 

मुख्य वक्ता मान्यवर संजीव खुदशाह के अलावा मा. भंवर लाल, डीएल भारती, बबला गढ़ेवाल, भाव सिंह, विक्रम झरिया, देव पात्रे, डॉ. आरएस मरकाम, डॉ. सीआर नेताम, डॉ. विकास सुखदेवे, दुर्गा मेहरा, जीडी राऊत, जीआर कुंजाम, ज्ञान रोशनी, एडवोकेट ज्ञानचंद टेंभुरकर, एचडी बंजारे, डॉ. एचएन टंडन, जयन्त्री प्रसाद, खेमराज झरिया, खिलावन बारले, महेश कुजुर, मुमताज पाटले, पायल रामटेके, राजेंद्र लहरी, पंकज मेश्राम, राकेश आर्य, रामायण सूर्यवंशी, रतन गोंडाने, रूपेंद्र जोल्हे, शिव प्रधान, सुखवारा टंडन, श्याम चेलक, एसके मेहरा, तपेश मेश्राम, विजय शंकर, युवराज पहाड़ी, अनिल कुमार बनज, अर्जुन जे, अशोक जांगड़े, भरत व्यास, छोटेलाल झरिया, दीपचंद भारती, डॉ. मोहन शेंडे, जानकी कुंजाम, लखनलाल, संजय टंडन, शैलेश कुमार विद्रोही, विनोद कुमार अशोक जांगड़े, रूप कुर्रे, सी महिलांग, आदेश रवि, देवानंद मेश्राम, डीएल दिव्याकर, उत्तम प्रसाद आदि 60 से अधिक लोगों ने भागीदारी की। अंत में अनिल बनज द्वारा धन्यवाद के साथ बैठक समाप्त घोषित किया गया।


Back to top button