बोसा का असर l ऑनलाइन बुलेटिन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई
Kiss Day
बिन तेरे, अब वीरान-सा लगता है ये शहर।
तेरे लब से मेरे माथे पे, बोसा का है असर।
तेरे हाथों को लबों पे रख, आँखों पे लगाया ,
उसी एहसास ने रखा ज़िंदा, है तुझे ख़बर।
वादा जो तेरा , मुझसे मिलने का था छत पे,
नँगे पाँव कड़ी धूप में, मैं आई थी दोपहर।
सिहर उठता है जिस्म, आज भी एहसास से,
मिलें न फिर कभी, जाने किसकी थी बद-नज़र।
जोगन बन कर रह गए हैं तेरे इश्क़ में हमदम,
बड़ा तल्ख़ लगता है, अब ज़िन्दगी का सफ़र।
दर-दर का भिखारी बना दिया एक दस्तक ने,
फ़लक अपना चादर है, ज़मीन लगती बिस्तर।
तावीज़ बना कर पहन रखा है तुझे अब तक,
जाने कब होगी मेरे शाम की, हसीन सहर।
लफ़्ज़ मुहब्बत में दिखता नहीं ज़ेर-व-ज़बर
राह-ए-इश्क़ में कहाँ-से-कहाँ आ गए नीलोफ़र।
राह-ए-इश्क़ में कहाँ-से-कहाँ आ गए नीलोफ़र।
*बोसा= kiss