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फरवरी और मुहब्ब्त | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

परिचय- मुंबई, आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.


 

 

मुहब्ब्त के मौसम पे ग़रूर है।

फरवरी का अलग ही सुरूर है।

 

दिल के जुड़ने और टूटने का खेल,

कभी मेल, कभी बेल, कभी जेल।

 

कितने दीवानों के आँखें की नम ,

यूँही नही फरवरी, तेरे दिन हुए कम।

 

जितनी जल्दी आये और चला जाये तू,

हँसाये कभी, बेइंतेहा रुलाये तू।

 

दिलवाले हैं तो दिल जले भी हैं।

पीठ में छुरा घोंप, मिले गले भी हैं।

 

ऐ फरवरी, यूँ तो तू हसीन सौग़ात है।

कभी आँसू, कभी मुस्कान में छुपी जज़्बात है।

कभी आँसू, कभी मुस्कान में छुपी जज़्बात है।

 


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