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दीया …

©रामकेश एम यादव

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र.


 

माटी का दीया हूँ, मेरे पास आओ,

जला करके मुझको अंधेरा भगाओ।

 

सूरज का वंशज हूँ निर्बल न समझो,

जुबां तो नहीं है, अपना ही समझो।

घर, आँगन, बाहर कहीं भी जलाओ,

जला करके मुझको अंधेरा भगाओ।

माटी का दीया हूँ……..

 

सृजन है जहां का तब तक अधूरा,

सितारों से होता न कभी भी सबेरा।

मंदिर या मस्जिद, कहीं भी जलाओ,

जला करके मुझको अंधेरा भगाओ,

माटी का दीया हूँ………

 

अपना तो कोई निजी घर नहीं है,

अपना तो कोई निजी दर नहीं है।

मेरी रोशनी से कहीं भी नहाओ,

जला करके मुझको अंधेरा भगाओ,

माटी का दीया हूँ………..

 

हवाओं की साजिश से मुझको बचाना,

अपने हुनर से मुझे तू सजाना।

फेरो न दिल मेरा गले से लगाओ,

जला करके मुझको अंधेरा भगाओ,

माटी का दीया हूँ…………

 

मेरे हक़ के कद को मुकम्मल करो तू,

खबर न हो दुश्मन को आगे बढ़ो तू।

हो सके तो तम की रुह को कंपाओ,

जला करके मुझको अंधेरा भगाओ।

माटी का दीया हूँ, मेरे पास आओ,

जला करके मुझको अंधेरा भगाओ।

 

Ramkesh M Yadav, Mumbai
रामकेश एम यादव

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