एहसास फूलों का… | ऑनलाइन बुलेटिन
©डीआर महतो “मनु”
परिचय- रांची, झारखंड
फूल कहता है….!
बेजुबान इश्क है तुमसे!!!
तुम कहो; तो मैं तुम्हारे गले का हार बन जाऊं…
तुम कहो; तो मैं तुम्हारे लिए एक खूब तोहफा बन जाऊं…
तुम कहो; तो मैं तुम्हारे माथे का जुड़ा बन जाऊं….
तुम कहो; तो मैं तुम्हारे हर सांसों का खुशबू बन जाऊं।
फूल जब नाराज हो जाता है,
तो कहता है…!
ये रंगीन तितलियां अब तुम मुझे ना छूना….
ये गुनगुनाते भौरें अब तुम मुझे ना चूसना….
ये खूबसूरत परियां अब तुम मुझे ना तोड़ना….
ये जीवन दानी माली अब तुम भी ना सींचना।
फूल जब मुस्कुराता है,
तो कहता है….!
ये महकता सुंदर, मनभावन बेवजह मौसम…
मेरे मधुरतम मन लुभावन अमृतमय सुगंध…
असंख्य जनों का इत्र पवित्र और दिलों का उमंग…
तेरे खातिर ही आजीवन खिलता और महकता ये मेरा जीवन।
फूल जब हार जाता है,
तो कहता है….!
…चाहे नेता, चाहे अभिनेता या चाहे आम जनता!
तुम्हारे खुशियों में जीते जी गले का हार हूं…
मरने के बाद भी मैं तुम्हारे खूबसूरत तस्वीरों का उपहार हूं…
तुम मुझे यूं ही तोड़कर बर्बाद ना करना…
तुम्हारे सबसे खूबसूरत जान से कबूल नामा कहलवा दूंगा…
सच कहता हूं; मैं तुम्हें; तुम्हारे गमों से सदैव आजाद कर दूंगा।
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