मोहब्बत का मारा | ऑनलाइन बुलेटिन
©तिलक तनौदी ‘स्वच्छंद’
मोहब्बत के दुश्मन का है अपना रुआब।
लगाकर फ़िरते हैं कितने वो नक़ाब।
अरे बुज़दिल इश्क़ को मत कर बदनाम।
नियंत्रण में रखो अपने सारे अताब।
कहीं प्रेमी जोड़े तो कहीं रिश्तेदार।
प्यार के रिश्तों को करते हैं ख़राब।
कहीं लिव इन सम्बन्ध से हाथ लाल।
कहीं सम्मान हत्या का करते हिसाब।
कल साथ रहने की क़सम थे खाए।
आज हाथ खून से रंगने को बेताब।
ऐसे खूँखार दरिंदों से बनाओ दूरियाँ ।
परखो बुध्दि विवेक से बनाओ आदाब।
तिलक की आवाज़ सुनो प्यार के दिवानों।
सोचो-समझो पहचानो फ़िर बुनों ख़्वाब।
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