मन करता है; फिर से में बच्चा बन जाऊं | ऑनलाइन बुलेटिन
©ममता आंबेडकर
परिचय- गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
मन करता है
फिर से में बच्चा बन जाऊं
मां के आंचल में फिर से छिप जाऊं
मां के हाथों से सज संवर कर
फिर से स्कूल की में दौड़ लगाऊं
मन करता है
मैं फिर से बच्चा बन जाऊं
गांव की गलियों में पेड़ की टहनियों में
फिर से उछल कूद मचाऊं
बचपन की खुशियों में फिर से मौज उड़ाऊ
गिल्ली डंडा चोर सिपाही फिर से खेलूं
अपने दोस्तो के साथ उस पल को फिर से जी लू
ना पाने की खुशी ना खोने का डर
फिर से सपनों की बहियां में डोलूं
फूलों के जैसे खुशबू बिखराऊं
पंछी के जैसे चहकती जाऊं
तितली के जैसे रंगों में घुल जाऊं
सुंदर भावों से सबके मन को भाऊं
थक हार कर स्कूल से घर वापस आऊं
फिर भी दोस्तों के साथ खेलने जाऊं
बारिश में कागज़ की नांव बनाऊं
फिर पानी में उसे चलाऊं
फिर से में बच्चा बन जाऊं
फिर से सच्चा प्यार सभी का पाऊं
समस्त देशवासियों को बाल दिवस पर हार्दिक मंगल कामनाएं …
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