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कह पारेव …

©राजेश कुमार मधुकर (शिक्षक), कोरबा, छत्तीसगढ़   


 

 

(छत्तीसगढ़ी हास्य कविता)

कहत कहत मैं का कह पारेव

दुबली पतली टुरी ल देख के

बने सुघ्घर टुरी हे कहना रहिस

पर मैहर खेखड़ी कह डारेव

कहत कहत मैं का कह पारेव

 

एक झीन लड़की देखेव उचास

कहना रहिस कैटरीना दिखथस

पर मैहर लमगोड़ी कह डारेव

कहत कहत मैं का कह पारेव

 

हाँसत एक झीन लड़की देखेव

कहना रहिस तोर हँसी गजब हे

पर मैहर गेजररी कह डारेव

कहत कहत मैं का कह पारेव

 

एक झीन लड़की तगड़ा देखेव

कहना रहिस खात-पियत घर के

पर मैहर मोटल्ली कह डारेव

कहत कहत मैं का कह पारेव

 

एक झीन टुरी के दाँत बने रहिस

कहना रहिस तोर दाँत बने हे

पर मैहर दतलीन कह डारेव

कहत कहत मैं का कह पारेव

 

एक झीन टुरी के नाक गजब के

कहना रहिस तोर नाक बने हे

पर मैहर छेपकी कह डारेव

कहत कहत मैं का कह पारेव

 

एक झीन लड़की ल देखेव चुप

कहना रहिस बने शांत हावस

पर मैहर घुमनी कह डारेव

कहत कहत मैं का कह पारेव

 

एक झीन लड़की ल बात करत देखेव

कहना रहिस तोर मीठ हे गोठ

पर मैहर भलभलहीन कह डारेव

कहत कहत मैं का कह पारेव

 

एक झीन टुरी के चुंदी ल देखेव

कहना रहिसे तोर चुंदी हे बढियाँ

पर मैहर झिथरी कह डारेव

कहत कहत मैं का कह पारेव

 

एक झीन टुरी ल चश्मा पहिने देखेव

कहना रहिस तोला बने फबत हे

पर मैहर कंडील कह डारेव

कहत कहत मैं का कह पारेव …

 

 


 

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