खून-ए-जिगर | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©भरत मल्होत्रा
परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र
पैसों की तरह जेब में डाले भी गए हैं
हम खर्च भी हुए हैं, संभाले भी गए हैं
खून-ए-जिगर से सुर्ख किया जिसके लबों को
आज उसी के दिल से निकाले भी गए हैं
यूँ ही नहीं बरसती आसमान से शराब
शायद कहीं कुछ जाम उछाले भी गए हैं
जुल्म ही नहीं हुए हम पर तमाम उम्र
बचपन में बड़े नाज़ से पाले भी गए हैं
किनारों पे लगे फूल दे रहे हैं गवाही
इस राह से कुछ चाहने वाले भी गए हैं