मया के प्रसाद …
©धर्मेंद्र गायकवाड़, नवागढ़ मारो, छत्तीसगढ़
अब तो तै आजा मोर सुनले फरियाद ।।
झोंक ले तै आके, मोर मया के प्रसाद ।।
होगे हौं मैं पगला तोर मया के धुन मा ।।
रात-दिन करथे गोरी, दिल तोला याद ।।
बहुत रोवाए मोला रानी, दुरिहा जाके ।।
अब दरद जुदाई के जबरन झन-लाद ।।
जिन्दगी के मजा, भुलाय कस लागथे ।।
बनजा मोर रानी फेर का पुछबे स्वाद ।।
तोर बिना पांच साल, लटपट गुजरे हे ।।
यहु साल गुजर जाही दो दिन के बाद ।।
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