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पूजा की थाल | ऑनलाइन बुलेटिन

©सरस्वती राजेश साहू

परिचय– बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

 

विधा – पद्य “दोहा “

 

सदा सजाऊँ प्रेम से, नित पूजा की थाल।

रोली, चंदन, दीप है, तिलक लगाऊँ भाल ।।

 

श्रद्धा के दो फूल है, प्रेम के मधु प्रसाद ।

भर दे उर आनंद को, करदे अंत विषाद।।

 

पावन गंगा जल लिए, करो अमृत जलपान ।

मन के शुद्ध विचार हो, करुणा, दया निधान।।

 

अक्षत, पीले पुष्प से, पूजन करती नाथ।

कर जोड़े नित द्वार में, टेक रही हूँ माथ ।।

 

अगर धूप की गंध है, अरु घंटी का नाद।

भजते स्वामी प्रेम से, हिय के सुनो निनाद ।।

 

भोग लगे प्रभु प्रेम से, प्रेम का मिले प्रसाद।

तर जायें भूलोक से, मिट जाये अवसाद।।

 

स्वास्तिक चिन्हित थाल में, श्री लक्ष्मी का वास

बन जाती पूजन सदा, मौली से शुभ,खास

 

पूजन, वंदन, अर्चना, ये जीवन के भाग

सदा विराजो देवता, हिय में बन अनुराग …


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