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बलात्कारी छूटते | ऑनलाइन बुलेटिन

©डॉ. सत्यवान सौरभ

परिचय- हिसार, हरियाणा.


 

अंधे साक्षी हैं बनें, गूंगे करें बयान ।

बहरे थामें न्याय की, ‘सौरभ’ आज कमान ।।

 

अभिजातों के हो जहाँ, लिखे सभी अध्याय।

बोलो सौऱभ है कहाँ, वह सामाजिक न्याय।।

 

पीड़ित पीड़ा में रहे, अपराधी हो माफ़।

घिसती टाँगे न्याय बिन, कहाँ मिले इन्साफ।।

 

न्यायालय में पग घिसे, खिसके तिथियां वार।

केस न्याय का यूं हुआ, ज्यों लकवे की मार।।

 

अन्धा हो कानून तो, कब मिलता है न्याय।

आँखों की पट्टी खुले, तो बदले अध्याय ।।

 

न्याय नहीं पाखंड है, हुई व्यवस्था मौन।

सत्ता की पट्टी बंधी, धर्म निभाये कौन।।

 

गूँगी बहरी कोर्ट है, मुजरिम न्यायाधीश।

बलात्कारी छूटते, उठे न मन में टीस ।।

 

न्यायालय ने रच दिया, न्यायपूर्ण इतिहास।

बलात्कारी छूटते, बन सत्ता के खास।।

 

नित होते व्यभिचार को, रोकेगा अब कौन।

पीड़ित जन धमकी सहें, सत्ता धारी मौन।।

 

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