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सरस्वती वंदना | ऑनलाइन बुलेटिन

©अशोक कुमार यादव

परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

 

 

जय जयति वीणा वादिनी। जय श्री शारदा ज्ञान प्रदायिनी।।

विद्या की देवी काव्य प्रतिभा। वीणा की देवी भारतीय माता।।

गंभीर विचार कवित्व शक्ति। श्वेत कमल वासनी हिंदू देवी।।

आदिशक्ति के तेज श्वेत सूरत। दिव्य वनिता प्रादुर्भाव मूरत।।

चतुर्भुजी स्वरूपा सन्ध्येश्वरी। कलित कामिनी  वाक्येश्वरी।।

पाणि में धारण किए उजाला। वीणा,वर मुद्रा,पुस्तक,माला।।

देवी वीणा का मधुरनाद किया। लौकिक जीवों को वाणी दिया।।

जल प्रवाह में कोलाहल व्याप्त। पवन प्रस्थान सरसराहट प्राप्त।।

हे!भाषा देवी वाणी की अधिष्ठात्री। शब्द और रस संचारिणी सरस्वती।।

चतुर्मुख विधाता की शक्ति वामा। बुद्धि और संगीत की देवी नामा।।

प्रसन्न हो श्री कृष्ण ने दिया वरदान। बसंत पंचमी को आराधना एवं मान।।

कवि अशोक तेरी चरणों में शीश नवाए। जन्मदिवस में देवी की जयगीत गाए।।

मेरे कंठ में विराजमान हो भगवती। बनकर कविराज उतारूं तेरी आरती।।

जन-जन के मन में चेतना जागृत करके। नई दिशा दिखाऊं दिल में उमंग भरके।।

युग बदलेंगे, बदलेंगे लोगों के विचार। धीरे-धीरे परिवर्तन का होगा संचार।।

मां मुझे सहस्त्रों ज्ञान का वरदान दो। चलूं नेक रास्ते पर हमेशा अरमान दो।।

बीते सबका जीवन आनंद और मंगल से। सुख में संगीत हो, खुश में हो आनंद से।।

स्तुति करूं कविता लिखने से पहले। जयघोष नाद हो ईश्वरी नाम पुकार ले।।

भूमंडल के नागरिकों को सभ्य करो। संस्कृति आचार-विचार हृदय में धरो।।

आ जाए जीवन में हमारे बसंत बहार। हरियाली ही हरियाली हो सारे संसार।।


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