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कुछ कहती हैं कविताएं | ऑनलाइन बुलेटिन

हरीश पांडल, विचार क्रांति के जन्म दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं संदेश …


©जलेश्वरी गेंदले

परिचय– शिक्षिका, पथरिया, मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

 

 

कुछ कहती हुई लगती है

हरीश पांडल जी की कविताएं

 

 

आज नहीं तो कल साबित होंगी

उनकी प्रतिभाएं

अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों

का निर्वहन करते हुए

 

 

समय साहित्य को देते हैं

जन- जागरण के तर्कों से

सबका दिल जीत लेते हैं

वीरता के रस भरे होते हैं

 

कविताओं में उनके

आंदोलन की राह जो

सबको सिखा देते हैं

काबिले-तारीफ है उनकी यह विशेषताएं

 

 

कुछ कहती हुई लगती है

हरीश पांडल जी की कविताएं

 

 

तमाम ज्वलंत मुद्दों पर वे रचना गढ़ लेते हैं

पढ़कर रचनाओं को उनके

दृश्य नयनों को दिखते हैं लगता है जैसे वे

सब रचनाओं के भीतर

ही रहते हैं

सोचती हूं उनमें कितनी भरी है गहनताएं

 

 

कुछ कहती हुई लगती है

हरीश पांडल जी की कविताएं

 

जातिवाद, गरीबी

भेदभाव, स्वाभिमान शिक्षा, नशामुक्ति

शोषण, राजनीति

भ्रष्टाचार, अत्याचार सभी विषयों पर वे

लिखते हैं

समानता हो सबके लिए ऐसे विचार वे रखते हैं

 

 

कलम के सिपाही हैं वे

सच में बड़े प्रभावी हैं वे

उम्मीद है उनकी रचना पढ़कर

देश में आ जाएं समानता

 

कुछ कहती हुई लगती है

हरीश जी की कविताएं।

 

जन्म दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ….

 

 जय भीम ….


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