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तेरी गलियों से | ऑनलाइन बुलेटिन

©हिमांशु पाठक, पहाड़

परिचय- नैनीताल, उत्तराखंड.


 

तेरी गलियों से ज्यों ही मैं गुजरा।

तेरा चेहरा जहन में था उभरा।

तेरी खुशबू हवा के साथ आई ,

यादों का कारवां था साथ चला।

तेरा चेहरा जहन में था उभरा।

तेरी गलियों से ज्यों ही मैं गुजरा।।

तेरी वो शोखिया, वो च॔चलता

याद आता है, छेड़ना तेरा।—-2

मुझको तिरछी नजर देखना और,

देखकर खिलखिला कर हस देना,

एक-एक मंज़र,जहन में उतरा।

तेरी गलियों से ज्यों ही मैं गुजरा।

तेरा चेहरा जहन में था उभरा।।

संग-संग,साथ-साथ चलती थी,

जाने कितनी शरारत करती थी।

पॉवों से छेड़ा करती तू मुझको,

तिरछी नजरों से देख हसती थी।

यादों का सिलसिला कुछ ऐसा चला,

तेरा चेहरा जहन में फिर उभरा।

तेरी गलियों से ज्यों ही मैं गुजरा,

तेरा चेहरा जहन में था उभरा।

तेरा चेहरा जहन में था उभरा ।।

तेरा चेहरा जहन में था उभरा ।।।

 

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