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तेरे जहां की रीत…

©गायकवाड विलास 

परिचय- लातूर, महाराष्ट्र


 

तेरे देश में प्रवेश कैसे मैं पाऊं ,

तेरे जहां की रीत कैसे मैं अपनाऊं?

वहां की संस्कृति है बड़ी ही न्यारी,

ऐसे देश में समता के गीत कैसे मैं गाऊं?

 

आकर देखो कभी तुम मेरे देश की परंपरा,

यहां दिशा दिशाओं में गुंजता है एकता का नारा।

भिन्नताएं हमारी बनी है देखो एकता की मिसाल,

फिर तेरे देश में आकर क्युं बनूं मैं बेहाल।

 

ये देश मेरा है प्यार भरें इन्सानियत का चमन,

संस्कृति के मूल्यों से ये भूमि है हर जगह पावन‌।

जहां बहती है गंगा,जमुना,कावेरी निर्मलता से,

ऐसा देश मेरा,जैसे महकता है वो चन्दन।

 

सारे जहां में सबसे अलग है ये मेरा देश,

जहां हर प्रांतों की अलौकिक श्रेष्ठ परंपराएं हैं।

ऐसी सुन्दर विविधताओं भरा है ये मेरा वतन,

जैसे अनगिनत चांद तारों से वो आसमां सजा है।

 

तेरे देश में प्रवेश कैसे मैं पाऊं ,

तेरे लिए मैं अपने सुन्दर देश को कैसे भुलाऊं?

तेरी चाहत मै करूं,कुर्बान अपने देश की लिए,

जिस मिट्टी में मेरे सभी अपनों की यादें समाई हुई है – – –

 

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