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ठोकर | ऑनलाइन बुलेटिन

©हरीश पांडल, विचार क्रांति, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

मदमस्त नींद में

सोये हुए हो

अब उठ जाओ

तुम सब सोकर

अपनी गलतियों के

कारण ही मूलनिवासी

खा रहे हैं ठोकर

साथ में रहने वाले

का सम्मान नहीं करते

उनका महत्व जानते

हैं उन्हें खोकर

मदमस्त नींद में

सोये हुए हो

अब उठ जाओ

तुम सब सोकर

मालिक उन्हें बना दिए

जो शोषण हमारा

करते हैं ?

हमारे बदौलत वे

खाते हैं, फिर भी

हमें समझते हैं नौकर

मदमस्त नींद में

सोये हुए हो

अब उठ जाओ

तुम सब सोकर

अपनी गलतियों

के कारण ही

हम खा रहे हैं ठोकर

समाज को सर्कस

बना कर वे रिंगमास्टर

बन बैठे हैं?

बहुजनों का दमन करके

हमे ही मार रहे हैं हंटर,

शोषितों और पशुओं में

उन्हें नहीं दिखता अंतर

सीने में मुंग दल रहे हैं

बहुजनों को बनाकर जोकर

मदमस्त नींद में

सोये हुए हो

अब उठ जाओ

तुम सब सोकर

अपनी गलतियों

के कारण ही

हम खा रहे हैं ठोकर …


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