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हम मजदूर है ….

©हरीश पांडल, विचार क्रांति

परिचय- बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

हां हम मजदूर है

हम इतना जानते हैं।

हम कितने मजबूर हैं

कितने लोग मानते हैं।

मंहगाई का आलम तो देखिए

परिवार के भरण पोषण

के लिए हम

दर-दर की खाक छानते है

हां हम मजदूर है

यह सब जानते हैं।

सत्ता का सुख भोगने वाले

कभी सुधि हमारे भी ले लो

बढती मंहगाई को कम करके

कुछ राहत श्रमिकों को भी दे दो

जीवन कैसे बिताते हैं हम

परिवार कैसे चलाते हैं हम

अभावग्रस्त है जीवन हमारा

फिर भी हम ईमानदारी

की सीमा नहीं लांघते है।

हां हम मजदूर है

हम इतना जानते हैं।

अभिलाषा बहुत है

हमारे भी मन मे

बच्चे कुछ बन जाये

इसी जीवन में

पेट काटकर उन्हें

हम पढ़ाते हैं

मंहगी होती शिक्षा

को देखकर

मन समोस कर

रह जातें हैं।

प्रतिभा का अभाव नहीं

है बच्चों में

गरीबी की परछाई से

बस कांपते हैं,

हां हम मजदूर है

हम सब जानते हैं।

मजदूर भी इसी समाज

के अंग है।

सुख-दुख के हालात

उनके भी संग है

धन के अभाव में क्यो

मरता है मजदूर?

क्या पशु के मानिंद उसके

जीवन का ढंग है?

मजदूर सा जीवन एक

दिन जीकर देखो?

फेंकू जैसा जुमला

मत फेंको

गरीबी हटाओ के नारा का

केवल राग अलापते हैं?

हां हम मजदूर है

हम इतना जानते हैं।

मजदूर कितधा मजबूर हैं

कितने लोग यह मानते हैं??

 

Harish Pandal, Bilaspur, Chhattisgarh
हरीश पांडल, विचार क्रांति

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