.

अस्तित्व की खोज में आज भी है नारी | ऑनलाइन बुलेटिन

©मंजुला श्रीवास्तव, व्याख्याता

परिचय– कोरबा, छत्तीसगढ़


 

 

एक नारी जहां बेटी का जन्म लेकर पूर्ण महिला होने तक का सफर तय करती है, वह आज भी अपने जीवन में अपनी ही एक पहचान को तरसती है नारी को आज भी अपने असली अस्तित्व की खोज है।

 

बेटी बन पिता की इज्जत, पति का गौरव, बच्चे की मां, दोनों घरों की लक्ष्मी, कुल की परंपरा बन जाती है; पर अपना नाम उस घर की नेम प्लेट पर कभी नहीं पाती है। ना जाने कब तक हम महिला दिवस मनाते रहेंगे। बस एक दिवस महिला को देकर कब तक खुश करते रहेंगे।

 

तन से है वह कोमल जरूर पर मन की पक्की, जीवन भर एक पिता की बेटी बनी रहती है, एक शराबी पति भी क्यों ना हो तो पत्नी बनी रहती है घर बहू बनी रहती है, भाई की बहाना .. लाख बुरा हो बेटा फिर भी एक अच्छी मां बनी रहती है।

 

तन, मन से रिश्ते संस्कार और अपना कर्तव्य निभाती घर का सारा काम भी करती है उसी औरत को ऐसे में कुछ लोग सरे आम पागल भी कह देते हैं पर भी वह घर को सजाती संवारती स्वर्ग सा बनाती है,पति निकम्मा, शराबी क्यों ना हो आय का साधन, बच्चों को पढ़ाने घर घर बर्तन मांज कर भी अपना घर चलाती है।

 

वहीं आज अगर बेटी पढ़ना चाहे अच्छे पद को पाना चाहे क्यों रोका जाता उसे, आज हर क्षेत्र में नारी है सब पर भारी या किसी से छिपा नहीं है फिर भी बेरोजगारी का कारण महिलाओं का नौकरी करना बताया जा रहा है। प्रतिष्ठा, मान, मर्यादा, घर की शान है नारी इसका बोझ ढोती अपनी आबरू को बचाती आगे बढ़ती है जब नारी, फिर भी अपने ही वजूद को जन्म से मृत्यु तक खोजती है नारी।

 

कुछ हद तक शिव भी है नारी; क्योंकि थोड़ा थोड़ा जहर भी रोज पीती है। दामन पर दाग ना लगे, पिता की डांट ना पड़े, पति ना रूठे उसके आत्मसम्मान को ठेस ना पहुंचे, बच्चे ताने ना मारे, घर ना छूटे, इसी डर से कभी-कभी कदम आगे बढ़ाने से डरती है आज भी नारी।

 

जिसे देवी की‌ तरह पूजा जाता हर घर में लक्ष्मी माना जाता है।  कहीं ना कहीं वह आज भी इज्जत की प्यासी है हां इसका जिम्मा भी महिलाओं पर ही डाल दिया गया कि बेटों को संस्कार देना हर मां की है जिम्मेदारी।  क्यों हर कर्तव्य घर की महिलाओं को दे दिया गया, क्यों पूरी घर गृहस्थी, परंपरा, संस्कार महिलाओं के हिस्से में आता है क्यों हर त्यौहार, व्रत, पूजा, विधान महिलाओं के व्रत से पूरा होता है।

 

पुरुषों की सहभागिता जरूरी क्यों नहीं मानी जाती, क्यों समाज भूल जाता है घर का हर काम, संस्कार, नियम, परंपरा हर व्यक्ति के लिए उतने ही महत्वपूर्ण होने चाहिए। क्योंकि पुरुष वर्ग भी उस समाज का हिस्सा है। एक छोटे से बेटे से लेकर पिता तक का सफर वह महिला के बिना अकेले तय नहीं करता जिस प्रकार हम कह सकते हैं कि पुरुष और महिला एक सिक्के के दो पहलू हैं तो क्यों ना हम पुरुष और महिला को हर चीज में बराबर समझे, इंसान समझ क्यों ना महिलाओं को भी एक इंसान का दर्जा मिले, क्यों आज भी हमें महिला सम्मान दिवस मनाना पड़ता है।

 

इसलिए हर बालिका को हमें तन मन धन से सशक्त बनाना है यह वचन जरूर निभाए क्योंकि निश्चित ही जिससे आने वाले समय में हम शशकत महिला को पाएंगे और भविष्य में महिला सम्मान दिवस मनाना ना पड़े ऐसा भी एक दिन आएगा।


Back to top button