महिलाओं की स्थिति | ऑनलाइन बुलेटिन
©द्रौपदी साहू (शिक्षिका)
परिचय- कोरबा, छत्तीसगढ़
महिला या नारी वर्तमान में इतनी सक्षम हो गई है कि वह पुरूषों की तरह हर कार्य को अपनी मेहनत और लगन से करती है। कालांतर में जो कार्य सिर्फ पुरुष ही करते थे, वे कार्य आज स्त्री या महिला भी करती हैं। महिला किसी भी कार्य को करने में पीछे नहीं है, चाहे खेल-कूद हो, खाना बनाना हो, घर संभालना हो, चाहे ऑफिस संभालना हो। साइकिल चलाने से लेकर मोटर-साइकिल चलाना, ऑटो, कार हवाईजहाज हर एक चीज उसे चलाना आता है।
पृथ्वी में पूरे विश्व की और अंतरिक्ष तक की यात्रा महिला कर चुकी है। गृहणी से लेकर IAS तक हर काम वह बखूबी करती है। इंजीनियर-डॉक्टर से लेकर देश की रक्षा का दायित्व भी वह निभाती है। वीर पुरुषों की तरह, वह भी वीरांगना कहलाती है। वह अपने वतन की रक्षा के लिए लक्ष्मीबाई बनती है। वह लोगों के हित के लिए कार्य करती है।
महिला या नारी का मन कोमल व उनका हृदय संवेदना से भरा होता है। वे हर किसी की समस्या या परेशानियों को समझने व परखने के काबिल भी हैं। वे ममता की मूरत होने के साथ-साथ अनुशासित करने के लिए कठोर भी होती हैं। महिला- माँ, बेटी, बहन, बहू, पत्नी, मामी, चाची, दादी, नानी हर रिश्ते को बखूबी निभाती है। महिला दो कुल को जोड़ने वाली कड़ी है।
महिला पढ़-लिखकर अपने घर-परिवार का नाम भी रोशन करती है। अपनी बुद्धि व विवेक का उपयोग करके लोगों का मार्गदर्शन भी करती है। महिला देश में शासन-प्रशासन का कार्यभार ग्रहण करने में भी पीछे नहीं हैं। राष्ट्रपति-राज्यपाल व प्रधानमंत्री के पद पर भी वे आसीन हुईं। हर क्षेत्र में वे कार्य करने की क्षमता रखती हैं, लेकिन दुःख की बात यह है कि आज भी कई लोग महिला को कमजोर समझते हैं और उसे अपने सपने पूरे करने से रोकते हैं। कई लोग उसके मन में डर पैदा करते हैं, उस पर दबाव डालते हैं, जिससे वह आगे न बढ़े।
महिला की शारीरिक बनावट पुरुषों से अलग व कोमल होती है। महिला में भी पुरुषों के समान बल है, किंतु समाज जन्म से ही उसे यह जताती है कि वह कमजोर है और इसी कारण वह डरी हुई रहती है और खुद को कमजोर समझती है। महिलाएँ समाज के असभ्य पुरुषों के कारण आज भी बेबस है। वह दूसरों को सहारा देती है लेकिन खुद बेसहारा बन जाती है। तब वह सोचती है कि क्या नारी या महिला होना गुनाह है? ईश्वर ने उसे नारी के रूप में दुनिया में क्यों भेजा? काश! कि वह महिला न होती! वह दरिंदों के हाथों नोची जाती है और बेमौत मारी जाती है। उसके जिस्म का व्यापार होता है, वह पल-पल घुटती और टूटती है, पर,, दरिंदों को ज़रा भी रहम नहीं आता।
आज के इस कलयुग में महिलाएँ भी महिलाओं की दुश्मन हैं। एक महिला होकर भी वह दूसरी महिला की तकलीफ नहीं समझती, बल्कि उसे खुद दरिंदों के हाथ सौंप देती है। उनके लिए पैसा ही सर्वोच्च हो गया है। वे दरिंदे जो हवस के भूखे हैं उन्हें अपनी माँ, बहन या बेटी का ज़रा भी ख्याल नहीं आता। उन्हें तो बस भूख मिटानी है।
देश भले ही स्वतंत्र है, लेकिन महिलाएँ कभी भी स्वतंत्र नहीं हैं। गाँधी जी का भी कथन है कि- “जिस दिन से एक महिला रात में सड़कों पर स्वतंत्र रूप से चलने लगेगी, उस दिन से हम कह सकते हैं कि भारत ने स्वतंत्रता हासिल कर ली है।” आज महिला रात में क्या दिन में भी सुनी सड़कों पर स्वतंत्र रूप से नहीं चल सकती! क्योंकि वर्तमान में समाज में असामाजिक तत्व अधिक हावी हो गए हैं। जब तक उनका नज़रिया नहीं बदलेगा तब तक, हर दिन हजारों महिलाओं की मौत होगी।