मां, काश तुम छोटी बच्ची होती | Newsforum

©हरीश पांडल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
मां, काश तुम छोटी
बच्ची होती ?
तेरी देखभाल मैं आसानी
से कर लेता
बीमार तेरे होने पर
मैं तुम्हें गोद में
भर लेता
सारे नित्य क्रिया तुझे
मैं सरलता से
करा लेता
मां, काश तुम छोटी
बच्ची होती ?
आज तुम जब
बिस्तर में पडी हो ?
जिंदगी से अकेले
जंग लडी हो
ना मैं तुम्हें गोद में
उठा पा रहा हूं
ना नींद भर तुम्हें
सुला पा रहा हूं
ना भरपेट खिला
पा रहा हूं
ना उंगली पकड़कर
चला पा रहा हूं
मां, काश तुम छोटी
बच्ची होती ?
काश, प्रकृति का
यह नियम होता ?
काश, इंसान बुढ़ापे में
छोटे बच्चे हो जाते ?
कितनी आसानी से हम
उनकी सेवा कर पाते
बुढ़ापे में कोई किसी
पर बोझ ना होते
अकेले उनकी सेवा
कर पाते ?
मां, काश तुम छोटी
बच्ची हो जाती
मां, काश तुम छोटी
बच्ची हो जाती …
