.

प्रेम एक एहसास है सिर्फ़ नाम का रिश्ता नहीं l ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई


 

मेरे प्रीत,

 

चौड़ी छाती , लम्बा क़द, सुडौल जिस्म के मालिक उसपे आर्मी का लिबास देख कर न जाने मन में कितनी तरंगें उठीं और दफ़न हुई। सब कहते थे कि मैं भी हुस्न व जमाल की परी लगती हूँ , लेकिन मुझे उस दिन ख़ुद पे फ़ख़्र हुआ, जब हाथों में गुलाब लिए, तुमने कहा कि मैं अपना सरनेम तुम्हारे साथ जोड़ना चाहता हूँ। ये सुनकर मुझे पहले तो यक़ीन नहीं हुआ, लेकिन जब तुमने मेरे हाथों को थामा तो मैं लबों पे मुस्कान लिए तुम्हारे हाथों से गुलाब लेकर भाग गई।

 

मैंने अब तक इज़हार नहीं किया और बेसब्री से तुम्हारे आने का इंतज़ार करती रही। वैलेंटाइन-डे पर तुमसे मिलकर इज़हार करूँगा ,न जाने कितने ख़्वाब दिल में सजा रखी थी, तुम वापस तो आये…..लेकिन, तिरंगे में लिपटकर, चारों तरफ़ तोपों की आवाज़, कोई *जय हिंद* कहता तो कहीं आँखों में नमी थी, लेकिन मेरी ज़िन्दगी में अजीब सी कमी थी। पुलवामा में 40 वीर शहीद हुए उसमें तुम भी एक थे। दिल में एक अजीब व ग़रीब सा तूफ़ान उमड़ रहा था, चाह कर भी न किसी से दर्द बयाँ कर सकी, न ही तुम्हारे सरनेम को अपना बना सकी।

 

हाँ, देखो न ये आँसू काग़ज़ पे गिरकर स्याही को ख़ुद में जज़्ब कर लिया, ठीक उसी तरह जिस तरह आज भी तुम मुझमें ,मेरी रूह में शामिल हो और हमेशा रहोगे, मैं हमेशा तुम्हारी थी और तुम्हारी ही रहूँगी। आज मुझे तुमपे गर्व है। जब भी ये वैलेंटाइन-डे आता है, नज़रों के सामने तिरंगा ही नज़र आता है।

तुम्हारी अधूरी प्रियसी।

??????


Back to top button