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रमज़ानुल-मुबारक | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

परिचय– मुंबई, आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.


 

क़तरा-क़तरा बनकर बिखरे थे,

पाक महीने ने आकर गुलस्तान सजा दिया।

रोज़ा रख कर भूख समझा

इबादत ने ख़ुदा से मिला दिया।

 

बरकत भी तू, शफ़क़त भी तू,

राहत भी तू, इबादत भी तू।

 

इंसानियत जो मिटने लगती है,

प्यास ने शिद्द्त बढ़ा दिया।

बूँद-बूँद की क़ीमत किया है।

माहे-रमज़ान तूने सीखा दिया।

 

नसीहत भी तू, मोहब्ब्त भी तू।

चाहत भी तू, हिफ़ाज़त भी तू।

 


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