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shaantidoot yeeshu kee janmabhoomi: शांतिदूत यीशु की जन्मभूमि थी ! बम बरस रहे, लाशें बिछ रही हैं…

Editorial
के. विक्रम राव

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

-लेखक इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।


 

shaantidoot yeeshu kee janmabhoomi bethalaham: Editorial

 

shaantidoot yeeshu kee janmabhoomi : कैसा लगेगा अगर जन्माष्टमी पर मथुरा खामोश, बिना उत्सव के हो जाए। अयोध्या में रामनवमी न मनाई जाए ! ठीक यही दृश्य आज है बेथलहम में जो इजराइल का विशिष्ट नगर है। यहीं ईसा मसीह का जन्म हुआ था। यहीं मुसलमानों का पवित्र अल-अक्स मस्जिद है। यहीं यहूदियों का भी तीर्थ स्थल है। धर्म-विषमता ही यहां उपद्रव और संग्राम का कारण भी है।

 

आज क्रिसमस पर बेथलहम नगर में मुर्दनी छायी है। शमशान की तरह स्तब्ध है। इसराइल-हमास जंग के कारण। पर्व का स्थान गमगीन है। कभी अंग्रेजी कवि हेनरी लांगफेलो ने लिखा था कि इसी दिन “मनुष्यों में सद्भाव होता है, धरती पर शांति रहती है। ईश्वर का पुत्र ईसा जन्मा है मानवीय उद्धार हेतु।” यह केंद्र ईसाई, यहूदी और इस्लाम मजहब का संगम स्थल है। धर्मों का इतना बड़ा केंद्र और ऐसी त्रासदपूर्ण वातावरण !

 

यीशु प्रभु का जन्मदिन 25 दिसंबर माना जाता है क्योंकि 25 मार्च, ठीक नौ महीने बाद उन्हें सूली पर चढ़ा कर मार डाला गया था। शिशु ईशू भगवान की देन थे। उनकी माता मेरी कुंवारी थीं। अतः यीशु का अवतरण ही चमत्कार था।

 

धर्म का केंद्र बेथलहम आज विश्व का सबसे बड़ा अशांत, युद्धग्रस्त नगर हो गया है। जहां धर्मपरायण लोग आराधना के लिए हजारों की संख्या में जमा होते थे, आज खाकी और नीली वर्दीधारी सिपाही पहरे पर हैं। निगरानी रख रहे हैं कि कहीं फिर हिंसा न हो।

 

अमूमन ईसा के जन्मदिन के दौरान बेथलहम को बड़ा लाभ होता है। पर्यटकों के कारण। आप सभी होटल वीरान हैं। हवाई जहाज की आवाज नहीं सुनाई देती। अलबत्ता एक पताका जरूर लहरी रहा है। उस पर लिखा है : “क्रिसमस की घंटियां पुकार रही हैं : गाजा में शांति रखो।” (shaantidoot yeeshu kee janmabhoomi)

 

बेथलहम का नजारा जानकर मुझे कश्मीर के क्षीर भवानी मंदिर की याद आई। यहां भी तीस साल तक वीरानी छाई थी। पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के कारण ? पड़ोस के मुसलमान दुकानदार रोते थे। बेरोजगारी भुगत रहे थे। हिन्दू तीर्थयात्री नहीं आ रहे थे। मगर अब दृश्य बदल गया। घाटी में शांति है। सुरक्षा भी। माँ क्षीर भवानी को पूजने हजारों श्राद्धालु आ रहे हैं।

 

मगर बेथलहम अशांत है। शांतिदूत की जन्मस्थली हिंसा की मरुभूमि हो गई है। फिर भी आशा बलवती हो रही है कि शांतिदूत फिर अमन ला देगा। ठीक जैसे क्षीर भवानी में हुआ है।

 

बेथलहम भी मथुरा और अयोध्या की भांति इतिहास का साक्षी रहा। बेथलहम को अरबी में “माँस का घर” तथा इब्रानी में “खाने या रोटी का घर” कहा जाता है। मध्य वेस्ट-बैंक में, येरुशलम से लगभग 10 किलोमीटर दक्षिण में स्थित इस शहर की जनसंख्या लगभग 30,000 है। फ़िलस्तीनी संस्कृति व पर्यटन का केंद्र है। हिब्रू बाइबिल में “बीट लेहम” की पहचान डेविड के शहर के रूप में और स्थान के रूप में की गई है, जहां इस्राइल के राजा के रूप में उसका राज्याभिषेक किया गया था। पादरी मैथ्यू और ल्यूक द्वारा दिये गये धर्मोपदेशों में बेथलहम को ईसा का जन्मस्थान बताया गया है।

 

प्रथम विश्व-युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना ने मुसलमानों से इस शहर का नियंत्रण छीन लिया और 1947 में फिलीस्तीन के लिये बनी संयुक्त राष्ट्र संघ की विभाजन योजना के तहत इसे एक अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शामिल किया जाना था।(shaantidoot yeeshu kee janmabhoomi)

 

न्यू टेस्टामेंट धर्मग्रंथ में दो स्थानों का वर्णन है कि ईसा का जन्म बेथलहम में हुआ था। संत ल्युक के धर्मोपदेश के अनुसार, ईसा के माता-पिता नाज़ारेथ में निवास करते थे, लेकिन वे छठी ईस्वी की जनगणना के लिये बेथलहम आए थे। उनके नाज़ारेथ लौटने से पूर्व वहीं ईसा का जन्म हुआ था।

 

मैथ्यू के धर्मोपदेश अनुसार, राजा हेरोड ने बताया कि बेथलहम में ‘यहूदियों के एक राजा’ का जन्म हो चुका था और उसने उस नगर में और उसके आस-पास के स्थानों में रहने वाले दो वर्ष और उससे कम आयु के सभी बच्चों को मार डालने की आज्ञा दी। ठीक जैसे राजा कंस ने वृंदावन और मथुरा में जैसी आज्ञा दी थी। तब बहन देवकी का पुत्र ब्रज में यशोदा के पास पल रहा था।

 

बेथलहम में ईसा के जन्म के काल से जुड़ी प्राचीन परंपरागत मान्यता को ईसाई पादरी जस्टिन मार्टर द्वारा प्रमाणित किया गया है। अलेक्ज़ेन्ड्रिया के ओरिजेन ने वर्ष 247 के आस-पास किये गए अपने लेखन में बेथलहम शहर में स्थित एक गुफा का उल्लेख किया है, जिसे स्थानीय लोग ईसा का जन्मस्थान मानते थे। (shaantidoot yeeshu kee janmabhoomi)

 

सन 637 ईस्वी में, मुस्लिम सेनापतियों, उमर इब्न अल-खताब द्वारा येरुशलम पर कब्ज़ा कर लिये जाने के कुछ ही समय बाद, दूसरे खलीफा बेथलहम आए और यह वचन दिया कि ईसा के जन्मस्थान पर बने चर्च को ईसाइयों के प्रयोग के लिये सुरक्षित रखा जाएगा। उमर ने शहर में चर्च के पास जिस स्थान पर प्रार्थना की थी, वहां उन्हें समर्पित एक मस्जिद का निर्माण किया गया।

 

सन 1187 में, सलादिन, मिस्र और सीरिया के सुल्तान ने मुस्लिम अय्युबिदों का नेतृत्व किया। उसके धर्मयोद्धाओं से बेथलहम को छीन लिया। लैटिन पादरियों को शहर छोड़ने पर मजबूर किया गया। सन 1192 में सलादीन ने दो लैटिन पुरोहितों और दो उपयाजकों की वापसी पर सहमति जताई। हालांकि, बेथलहम को तीर्थयात्रियों से होने वाले व्यापार की हानि उठानी पड़ी क्योंकि यूरोपीय तीर्थयात्रियों की संख्या में बहुत अधिक गिरावट आई थी।

 

इस प्रकार यह धर्म नगरी यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के कब्जे में आती जाती रही। शायद ईसाइयों और इस्लामियों का प्रारब्ध था कि उनका यह पवित्र स्थल अशांत रहा। अंग्रेज इसाइयों ने भारत में मतांतरण कराया था। आखिर इन इस्लामियों ने भी राम और कृष्ण की जन्मभूमि तथा ज्योतिर्लिंग शिव के काशी में भंग किया था। जबरन तोड़ा था। अब पारलौकिक चमत्कार हो रहा है। अयोध्या, काशी और मथुरा वापस उनके आस्थावानों को मिल रहे हैं। क्रिसमस का भी संदेश है कि सभी धर्मों का सम्मान करो।(shaantidoot yeeshu kee janmabhoomi)

 

 

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के. विक्रम राव

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