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डूब रही है स्वतंत्रता की नैया…

©प्रा.गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र


 

ये पढ़ा लिखा ज़माना भी देखो कितना वतनफरोश निकला है,

ख़ुद के सिवा उन्हें यहां औरों का जीना कब दिखता है।

 

जिस मिट्टी के लिए लहू उन शहिदों ने बहाया है,

हम कैसे कहें ये उन्हीं शहिदों की खुदगर्ज औलादें है।

 

पानी बना ख़ून इन्कलाब क्या करेगा इस जहां में,

जो हर पल डुबा है अपनी ही स्वार्थ भरी दुनिया में।

 

युंही नहीं निकला है ये आजादी का सूरज यहां पर,

देखो कभी वो लहू की बहती नदियां इतिहास के पन्नों पर।

 

उस लहराते तिरंगे की छांव में ये सारा जहां आबाद है,

जो मर मिट गए इस मिट्टी के लिए,वो मंजर अब किसे याद है।

 

गांव-गांव,शहर-शहर चारों ओर फैला दर्दनाक अंधेरा है,

डुबा रही है स्वतंत्रता की नैया और बढ़ता बेईमानों का बसेरा है।

 

ये पढ़ा लिखा ज़माना भी देखो कितना वतनफरोश निकला है,

बचाओ उसी स्वतंत्रता की नैया को, देखो सामने बढ़ता हुआ जलजला है।

 

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