आज ये तिरंगा जो… | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
आज ये तिरंगा जो लहराता हुआ तुम्हें नज़र आता है,
जरा देखो उसमें शहीदों का बहता हुआ लहू नज़र आता है।
आंखों पर बंधी हुई पट्टीयां अब तो निकालो ज़रा,
कुछ बेईमानों के निगाहों में बसा हुआ है ये खिलता गुलशन हमारा।
थोड़ा थोड़ा बेचकर,वो उन्नति और क्रांति की बातें करते है,
देखो वो ही बेईमान गुलामी और हुकूमशाही का रंग दिखा रहे है।
उखाड़ फेंको ऐसी सियासतें,जो भूल गई है गुलामी का मंज़र,
उन्हें क्या पता आज़ादी के पन्नों पन्नों पर लहू की नदियां बहती है।
संविधान की वजह से ही आज ये सारा जहां खुशहाल है,
संविधान के पहले का नज़ारा तो सबने यहां देखा और पढ़ा है।
तुकडो तुकडो में जब हम बंटे थे,तभी ग़ुलाम हो गया था ये वतन,
जब बह गया शहीदों का लहू,तभी खिला हुआ है ये हमारा चमन।
अपनी सत्ता के लिए नफरतों के बीज वो बोते चलें आ रहे है,
जल रही है बस्तियां और वो अपने महलों में रंगेलियां मन रहे है।
तुम ही सोचो ज़रा आज इस आज़ादी में किसे बेइंतहा तकलीफ है,
वो ही लोग है,जिन्हें सियासत डगमगाती हुई नज़र आ रही है।
आज ये तिरंगा जो लहराता हुआ तुम्हें नज़र आता है,
जरा देखो उसमें शहीदों की चीखें और बहता हुआ लहू नज़र आता है।
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