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आज के युग की नारी | ऑनलाइन बुलेटिन

©इंदु रवि

परिचय– गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश


 

 

ना रहूंगी मैं बेचारी

आज के युग की नारी हूं..

किसी की प्यारी बेटी

किसी की बहना और किसी की महतारी हूं…

हां मैं आज के युग की नारी हूं

मुझे कम ना आंकना

ना  इधर – उधर झांकना ।

धरा पर से खरपतवारों को ,

हटाने वाला फावड़ा,

 हंसिया और आरी हूं 

हां मैं आज के युग के नारी हूं

जितने दर्द पाकर

तुम कभी पापी बन जाते

कभी शराबी बन जाते

कभी औरों की अस्मत से खेलने लग जाते ।

उतने दर्द नित लेकर भी

ना कभी मैं हारी हूं ।

हां मैं आज के युग की नारी हूं..

कभी कल्पना, कभी प्रतिभा

कभी माया, लता, मीरा,

महादेवी बनकर प्रतिभा निखारी हूं…

हां मैं आज के युग की नारी हूं..

 

बच्चे संभालती, घर संभालती, ऑफिस भी संभालती ,

एक साथ संभालती दुनियादारी हूं…

हां मैं आज के युग की नारी हूं..

जीवन दायनी हूं, प्रकृति हूं मैं ,

हर परिस्थिति में खुद को ढलने और बढ़ने की देती स्वीकृति हूं मैं ।

खुद के साथ औरों की भी जीवन संवारी हूं..

हां मैं आज के युग की नारी हूं…

 


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