नज़र…
©भरत मल्होत्रा
नज़र के सामने होकर भी बहुत दूर लगा
न जाने क्यों मुझे वो शख्स कुछ मगरूर लगा
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यक-ब-यक तूने उठाया जो पर्दा रूख से
चाँद पूनम का भी आगे तेरे बेनूर लगा
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तुमने आँखों से जाने क्या पिलाया मुझको
मैं सारी दुनिया को मय के नशे में चूर लगा
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मैं तो जुम्बिश-ए-मिजगां से ही मुजरिम ठहरा
वो कत्ल करके भी लोगों को बेकसूर लगा
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