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हम गूंगे नहीं रहे अब…

©राजेश कुमार बौद्ध

परिचय- संपादक, प्रबुद्ध वैलफेयर सोसाइटी ऑफ उत्तर प्रदेश


 

हरीली होती मेरी जुबान

क्योंकि

सत्य होती है ऐसी

जो उगलने पर होता बवाल

मैं दोस्तों से उग जाता हूँ

क्योंकि

मैं न चाहते हुए

मेरी कलम कर देती है बयान

दलितों और नारियों के अत्याचार पर

देख कर लोग सहम जाते हैं

आखिर क्यों ?

परन्तु अब नहीं सहम खायेंगे

हम गूंगे नहीं रहे अब।

दर्द समेटने में सक्षम हैं

चिल्ला सकते हैं

बदला ले सकते हैं

अपमान और तिरस्कार का

सच कहूं तो

फट जायेगी छाती

कल्पना करो,

अगर तुम मेरी जगह होते

चमार, भंगी और वेश्या का बेटा

तुम्हें पुकार जाता

चमार भंगी का बेटा

सोचो लगता तुम्हें कैसा

तब तुम उसका

कुछ न बिगाड़ पाते

जब कहता तुम्हें

भंगी, चमार, रंडी का बेटा।

तुम्हारी मॉ – बहन नंगी कर दी जाती

गॉव और चौराहों पर

नग्गा घुमाया जाता

मुंह काला किया जाता

तुम्हारी झोपड़ियों में

तब तुम्हें कैसा लगता

जब तुम

हमारे इशारों पर जीते मरते

मेरे शार्पो से आतंकित रहते

जिस पर न्याय और शासन

मेरा होता

बिना परिश्रम किये भोजन न मिलता

बन्द हो सारे शिक्षा और

उन्नति के मार्ग

तब तुमको कैसा लगता

तुम मानों या न मानों

आज भी होते हैं,

दलितों और नारियों पर अत्याचार

बलत्कार और मौत का तांडव

बस तेरे एक इशारे पर। ●

 

 

 

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