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सुबह है क्या, शाम है क्या ……..

©राहुल सरोज

परिचय- जौनपुर, उत्तर प्रदेश

 

सुबह है क्या, शाम है क्या,

श्रमिक हूं मैं, आराम है क्या?,

नित उठता हूं संभलने को,

अपनी तकदीर बदलने को,

थकना है क्या मै क्या जानूं,

 

मेहनत के सिवां मेरा काम है क्या,

 

श्रमिक हूं मैं, आराम है क्या?

 

 

मैं रुक जाऊं जग रुक जाता,

 

मैं मुरझाऊं जग झुक जाता,

 

मेरे चलने से जग चलता है,

 

मुझसे नित फलता फूलता है,

 

अपने कर्म धर्म की सेवा में,

 

मै भूल गया अरमान मेरा,

 

श्रमिक हूं मैं, आराम है क्या?

 

 

उम्मीद है कुछ बदलाव मिले,

 

मुझको भी छत और छांव मिले,

 

मशीन नहीं इंसान हूं मैं,

 

मुझको बेहतर बरताव मिले,

 

खेतों में खलिहानों में,

 

देश के कल कारखानों में,

 

काम अधिक पर दाम है क्या?

 

श्रमिक हूं मैं, आराम है क्या?


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