आज आ पहुंची कहां इस जिंदगी पर सोचिए | ऑनलाइन बुलेटिन
©रामावतार सागर
परिचय– कोटा, राजस्थान
खून के प्यासे हुए उस आदमी पर सोचिए
उस तरफ तो दौड़ जारी है खुशी के वास्ते
इस तरफ जो है सिसकती बेबसी पर सोचिए
झाडू पौंछा झूठे बरतन कपड़े धोकर जिंदा है
है युगों से पीर सहती जानकी पर सोचिए
खैरियत पूछी नहीं बेटे ने आकर आज भी
कैसे गुजरी रात माँ की आखिरी पर सोचिए
हम नहीं कहते हमारे पास भी हो चाँदनी
दूर हमसे अब तलक है रोशनी पर सोचिए
काम ऐसा भी करो कुछ देश का भी हो भला
बात लगती लाज़िमी तो भारती पर सोचिए
आ गये रंगीनियों के दौर में आखिर मियां
ढूँढ़ती रहती निगाहें सादगी पर सोचिए
हो कहीं संभावना बच जाएगी थोड़ी हँसी
खिलखिलाती सी मिले उस दोस्ती पर सोचिए
गम जहां के ढूंढ कर लाती है मेरी जिंदगी
क्या करें सागर बता इस पेशगी पर सोचिए