वो सुकून कहीं और कहां | Newsforum
©डॉ. सपना दलवी, कर्नाटक
परिचय :- शिक्षा- एमए, एमफिल, अनुवाद डिप्लोमा, पीएचडी, रुचि- कविता, कहानी, नाटक, स्त्री विमर्श लेखन, उपलब्धियां: हिन्दी व मराठी भाषा में देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेख का प्रकाशन.
मां के आंचल में जो सुकून है
वो सुकून कहीं और कहां
सुना था मैंने, उसने सुनी जब
मेरी पहली किलकारी
तो आंखें उसकी नम सी हुई थी
पाकर मुझे अपनी गोद में
उसने तो सारी दुनियां भुला दी
मां के आंचल में जो सुकून है
वो सुकून कहीं और कहां
रात में लोरी सुनाकर
जिसने मुझे मीठी नींद सुलाई
वैसी नींद मुझे अब कहां
जिसने कोमल हाथों से दी थपकियां
उन थपकियों का स्पर्श अब कहां
मां के आंचल में जो सुकून है
वो सुकून कहीं और कहां
पहली बार जब कदम उठे
मैं तो लड़खड़ा कर गिर गई
तब उसकी उंगली ने थाम लिया
बिना लड़खड़ायें चलना सिखाया
मां की आंचल में जो सुकून है
वो सुकून कहीं और कहां
खुद भूखी रहकर जिसने मुझे खिलाया
अपने हिस्से का निवाला भी
उसने मुझे खिलाया
आज तरस रही हूं मैं
पाने फ़िर से उस स्वाद को
पर वैसा निवाला अब कहां
मां के आंचल में जो सुकून है
वो सुकून कहीं और कहां
मां की याद तो हर वक्त सताती हैं
दो पल बात करती हूं
फ़िर भी उसकी याद आती हैं
आज नहीं रहीं सिर्फ़ मैं बेटी
किसी के घर की बन गई हूं बहू
मायके से ससुराल तक का सफर
करते, थका रुका मेरा जीवन
याद आती हैं हर पल मां
मां तो मां होती हैं
उसके जैसा कोई और कहां
मां के आंचल में जो सुकून है
वो सुकून कहीं और कहां ..