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सावन के झूले | Newsforum

©हरीश पांडल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

सावन के झूले

कोई कैसे भूले

अद्भुत है नजारे

रिमझिम

बारिश की फुहारें

दिल को छू जाती है

देखकर वह नजारे

सावन के झूले

कोई कैसे भूले

भीषण गर्मी की

धधकती शूलें

मखमली मरहम है

सावन की बूंदें

झूले की वह सरसराहटें

लाती है ठंडी आहटें

खुश हो जाती है

सभी बसाहटें

चाहे इंसान हो

चाहे प्रकृति हो

चाहे वन्य प्राणी

सबके मन प्रफुल्लित

हो जाते हैं

देख सावन की फुहारें

थप- थप टपकती

माथे से पसीना

तर कर जाती

ठंडक दे जाती

सावन की महीना

खुशियां लाती प्रेम

बरसाती

बन कर बारिश

मेघ मल्हार

झूलों की कतारें

गोरी झूले झूलतीं

नैन मटकाती

गर्मी की त्रासदी से

मुक्त हो जाती

बंद हो जाती

उड़ना धूलें

सावन के झूले

कोई कैसे भूले

प्रकृति ने वह

छटा बिखेरी

मेघ जैसे गोरी

के केश घनेरी

आंधी- बारिश जैसे

संग सहेली

झूले पर इठलाती

जवानी

मौसम में भी

आई रवानी

सबके जीवन की

हो कहानी

भूलकर कांटो

की चुभन

याद रहें मनभावन

मनमोहक फूलें

सावन के झूले

कोई कैसे भूले …


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