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नारी की पीड़ा…

©पद्म मुख पंडा

परिचय- रायगढ़, छत्तीसगढ़


 

करें कहां से शुरु, करें हम ,करें कहां पर अन्त!

नारी की महिमा है न्यारी, जिसकी कथा अनन्त

जन्म दात्री है, पोषण करती, जीवन का आधार

त्याग मूर्ति है, ममता का, देती जग को उपहार!

उसके लिए बंदिशें सारी, करना है जो काज।

कितना निर्मम हो जाता है, पुरूष प्रधान समाज।।

कन्या हो या बालक, मन में, रखती कभी न भेद

रखती है समभाव, न्याय से, होता कभी न खेद

नारी की पीड़ा को लेकर रचे गए जो  गीत।

हृदय विदारक, जग उद्धारक, मर्मांतक संगीत।

श्रृष्टि की, सबसे सुन्दर, रचना है नारी देह।

जिसमें वास करे ममता, करुणा भी निस्संदेह।

त्याग भावना, कूट कूट कर, रखती मन में डाल

जो परिवार, समाज, देश की बन सकती है ढाल

कन्या की भी, देख रेख हो, बालक के अनुरूप

शिक्षा, सेहत, पहनावा संग, मिले छांव औ धूप

अगर न होती नारी, तो, क्या चलता  यह संसार?

होती निर्जन धरती, होता केवल हाहाकार।

नारी की पीड़ा को समझो, हे नर! सब गुणवंत!

तभी जगत में, हो सकता है, सभी दुखों का अंत

 

Padma Mukh Panda, Raigarh, Chhattisgarh

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