थूकना / उगलना मना है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
कुछ चीज़ें बाहर आकर है नुकसान पहुंचाती,
बिमारी जिस्म तो कभी रिश्तों को है लगाती।
जिस्म से थूक जब बाहर आ जाता है,
ना जाने कितनों को चपेट में ले जाता है।
किसी का राज़ जब उगला जाए,
बुझती राख को भी ये बारूद बनाए।
ज्वालामुखी भी बाहर आकर तबाही मचाती,
सुनामी अपने साथ नाम व निशान ले जाती।
गंदगी चारों ओर फैल जाता है,
थूकना मना है, यूंही नहीं लिखा जाता है।
ख़ुद से ज़्यादा दूसरे को दर्द होता है,
तबाही का मंज़र बड़ा बे – दर्द होता है।
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