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मजदूर बनाम मजबूर | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

परिचय– मुंबई, आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.


 

 

ये महल को शीशे को रोशनाई देता है

मजदूर का पसीना, खून बनकर दिखाई देता है

 

यूँ ही तो गुलज़ार नही हुई शहर की हर गलियां

ग़ौर से सुनना, इसमें एक आह सुनाई देता है

 

आज लहु से रंगीन हो गयी, ऐ हसीन सड़क

तेरी हर आहट में बच्चों का कफ़स दिखाई देता है।

 

फिर भी हालत बेहतर न कर पाया ऐ मजदूर तेरा

भारतीय होने पे अब मुझे अफसोस दिखाई देता है

 

सबका महल बनाकर, खुद फुटपाथ पे सोता है

क्यों किसी को तेरे पाँव का कांटा न दिखाई देता है

 

ग़रीबी, भुखमरी, बेबसी, लाचारी क्या यही तेरी किस्मत है

किस्मत बदल जाएगी ये सिर्फ भाषण में सुनाई देता है।

 

एक दिन बदल के रह जायेगी, तक़दीर मजदूर की,

हर काग़ज़ पे सुनहरे अक्षर में लिखाई देता है।

 

कोई तो चिराग़ जलाकर, कर दो इनकी दुनिया रौशन

रौशनी में रहने वाले को नीलोफर, कहाँ अंधेरा दिखाई देता है


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