आओ चलें गांव की ओर | Newsforum
©निरज यादव, चम्पारण, बिहार
दिन-रात भूखे पेट सो रहे हैं,
अपनी लाचारता पर हम ख़ुद रो रहे हैं।
कोरोना की क़हर हमें रूला रही है,
लॉकडाउन में गांव हमें बुला रही हैं।
जिस गांव को छोड़कर हम भागे थे,
बिना सोये पूरी रात हम जागे थे।
आज शहर हमें भगा रही है,
लॉकडाउन में गांव हमें बुला रही है।
अपनी खुशी के लिए उस गांव से नाता हमने तोड़े थे,
गांव से आकर एक-एक ईंट हमने जोड़े थे।
अच्छे मकान में भी कोरोना हमें पकड़ रही है,
लॉकडाउन में गांव हमें बुला रही है।
मुसीबत में कोई नहीं है हमारे साथ,
बीत रही है जिंदगी अकेले दिन-रात।
कोरोना हमें अपनी चपेट में जकड़ रही है,
लॉकडाउन में गांव हमें बुला रही है।