रिश्ते | Newsforum
©डॉ. कान्ति लाल यादव, सहायक आचार्य, उदयपुर, राजस्थान
रिश्ते कच्चे धागे की तरह होते हैं।
पता नहीं कब टूट जाते हैं।
रिश्ते मौसम की तरह होते हैं।
पता नहीं कब बदल जाते हैं।
रिश्ते सच्चे हो तो जीवन को संवार देते हैं।
रिश्ते कच्चे हो तो जीवन को मुरझा देते हैं।
रिश्ते मतलब के हो तो गिरगिट की तरह रंग बदल देते हैं।
रिश्ते हकीकत के हो तो दर्द दूसरों का हो आंसू अपने निकाल देते हैं।
रिश्ते खून के हो तो दिल में पिघल जाते हैं।
रिश्ते दूर के ही सही सच्चे हो तो दिल से जुड़ जाते हैं।
रिश्ते टूटते हैं, जुड़ते हैं, मुड़ते हैं, बनते हैं, बिगड़ते हैं।
रिश्ते कड़वे हैं, मीठे हैं, खट्टे हैं, चटपटे हैं, वफा के हैं, खफा के हैं।
रिश्ते कभी अपने भी पराए हो जाते हैं।
रिश्ते कभी पराए भी अपने हो जाते हैं।
रिश्तों में कड़वाहट घुल जाती है तब सबको खलती है।
रिश्तों में मिठास घुल जाए तो शहद की तरह लगती है।
रिश्तों को प्यार से यदी पनपाओ, कभी लगे ना पराए।
रिश्ते को बनाओ मीठा झरना, प्यार से हर कोई अपनाए।
रिश्तों को बनाओ दिल की धड़कन की तरह एक पल बिन खटक जाए।
रिश्तों की मिठास बिन मानव मनसे भटक जाए।
रिश्तों की माला टूटे तो प्यार के मोती बिखर जाता है।
रिश्तों की कड़ियां जुड़ जाए तो जीवन सोनेसा निखर जाता है।
रिश्तों की मनुहार बिना जीवन का होता नहीं श्रृंगार।
रिश्तों में विश्वास के बिना जीवन होता है सदा अंगार।
रिश्तों में जीने का एहसास है तभी जीने का विश्वास है।
रिश्तों में जीवन के बनते सुंदर मोती
तभी मानव में खिलते फूलों से
खुशबू की खेती।