जनवरी की हवाएं | ऑनलाइन बुलेटिन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई
जनवरी की सर्द हवाएं
ठिठुरता की ओर ले जायें।
अमीरों की शान बन जाए,
ग़रीबों को पल-पल तरसाए।
जोड़कर कुछ कपड़ों का सहारा,
दुबक कर सहमता किनारा।
ग़रीबी का आलम तुम्हें क्या बताएं।
जनवरी की सर्द हवाएं ।
बेचारे ये बेसहारा जानवर,
दीवार की ओट में बनाते घर।
भगाने की ख़ातिर, लोग फेंकते पानी,
ठंड से सिहरन और आंखों से झलकता पानी।
चार बच्चों को सिमटकर बैठती मां,
एक-दूजे की गर्मी से सिमटती मां।
बेज़ुबान की दर्द क्या सुनाएं।
जनवरी की सर्द हवाएं
सड़क किनारे बेबसी की पुकार,
एक ही चादर में सारा परिवार।
सर ढंके तो पांव खुल जाए,
दिल की बीती किसे सुनाए।
सूरज की एक किरण का इंतेज़ार,
मन प्रफ़ुल्लित कर लाए बहार।
ज़रा पास बैठ, थोड़ा दर्द सुनाएं।
जनवरी की सर्द हवाएं
परिंदे अपने घोंसले से निकल न पाए,
पिता चले दाना लाने, मां बच्चों के बीच पंख फैलाये।
तिनके के घोंसले का सहारा,
सर्द मौसम का यही है नज़ारा।
परिंदे की आप बीती किसे सुनाएं,
जनवरी की सर्द हवाएं ।
इंसान बन इंसानियत की मिसाल बनो,
गर हो सके दान कर महान बनो।
एक मदद किसी के काम आएगी,
सूरज की अग्नि बन ठंड मिटाएगी।
सूरज की अग्नि बन ठंड मिटाएगी।