नित नया सवेरा | ऑनलाइन बुलेटिन
©अशोक कुमार यादव
परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़.
जागो, जागो, जागो, जागो, जागो।
नित नया सवेरा, तुमको बुला रहा।
दूर परिंदे बैठे छत पे, हमको आवाज लगा रहा।।
क्रांति की मशाल लिए, राहों में हम निकल पड़े।
चारों तरफ देखा मैंने, अपने सभी यही खड़े।।
मन में साहस भरके, अरमानों के नया फौज चले।
अपने हक की लड़ाई, कर्मवीर अब लड़ने चले।।
सोते आलस मन को, गाढ़ नींद से अब जगा रहा।
जागो, जागो, जागो। नित नया सवेरा, तुमको बुला रहा।।
दूर परिंदे बैठे छत पे, हमको आवाज लगा रहा।।
मंगें है अपनी जायज, मुँह तुम यूँ न फेरो।
सोचो हमारे बारे में, भविष्यत के लिए करो।।
कैसे गुजारे दिन हम, कैसे काटे लंबी रातें?
सम अधिकार का नहीं, मिल रहा सौगातें।।
मांगो पर विचार करके, कुतंत्र हमको घुमा रहा।
जागो, जागो, जागो।
नित नया सवेरा, तुमको बुला रहा।
दूर परिंदे बैठे छत पे, हमको आवाज लगा रहा।।
कदम से कदम मिलाकर, हमको आगे बढ़ना है।
एकता होकर के सबको, हक के लिए लड़ना है।।
जागा जुनून दिल में अब, महाक्रांति का आगाज है।
मांगें कर दो पूरी-अधूरी, लोकतंत्र की आवाज है।।
चिंतन-मनन करके कुशासन, लालीपाप दिखा रहा।
जागो, जागो, जागो।
नित नया सबेरा, तुमको बुला रहा।
दूर परिंदे बैठे छत पे, हमको आवाज लगा रहा।।
जागो, जागो, जागो, जागो।।