.

फोटोग्राफर | ऑनलाइन बुलेटिन

©रामकेश एम यादव

परिचय– मुंबई, महाराष्ट्र.


 

 

(नज्म)

 

फोटोग्राफर के हाथ में

होती है बड़ी ताकत,

उसके हाथ की कूँची में भी

होती है नजाकत।

वो होता है समाज का आईना,

उसके अंदर होती है बड़ी अकीदत।

एक हाड़-मांस के बूढ़े आदमी को

बना देता है बिलकुल जवान,

इश्क और आशिकी से भर देता है

उसका आसमान।

वह दोपहर की पसलियों पर भी

चला देता है आरी।

बना देता है नील गगन में

महकती फूलों की क्यारी।

किसी सिकुड़ी औरत का गर्दन

बना देता है सुराही।

धुंधली आँखों और झूर्रीदार गालों को

बना देता है जैसे बिनु व्याही।

सफेद बालों को बना देता है

काली घटा,

होठों पे बिखेर देता है

शराब और शबाब,

चकमा दे देता है खिंजा को,

ला देता है बसंत।

चहकने लगती है बुलबुल,

झूमने लगते हैं दिग-दिगंत,

उसकी कोमल भावनाओं का

नहीं है कोई अंत।

देखा जाए,तो यही है

उसकी रियासत,

फोटोग्राफर के हाथ में

होती है बड़ी ताकत।

 

ये खूबसूरत कला

मुझे बड़ी अजीज है,

हाँ,किसी के लिए ये नाचीज है,

हमारी तहजीब का ये हिस्सा है।

ये हकीकत है

और किसी के लिए

शायद एक किस्सा है।

ये बे-जान जिस्म में,

जान डाल देती है।

खूँटियों पर लटककर भी

हमें ज्ञान देती है।

बना देती है ये रेत का दरिया,

भले प्यास न बुझा सके,

भूली दास्तां को संजोकर

रखने का है एक जरिया।

देखने से भी होंठ भींग जाएँगे,

इस हुस्न को हम अपने

आसपास ही पाएँगे।

कितनी कैफियत इसके अंदर

छिपी रहती है,

चीख-चीत्कार, दर्द से लहूलुहान,

उक्रेन जैसी तस्वीर बसी रहती है।

ज़ख्म पर मरहम लगाता तो है,

अपने इल्म से सबको जगाता तो है,

मानों ये विशाल धरती पर

फूल बिछाता है,

रफू करता है बीते हुए काल का।

वह कायल होता है

हर निकले अल्फाज का।

वह उतार देता है हर साँस को पन्नों पर,

जैसे कोई तितली बैठी हो गन्नों पर।

शिद्दत से उठाता है मासूम सवाल।

फजाओं में उठते धुएं को करता है कम,

अपनी तूलिका से छाँटता है गम।

पत्थर दिल को भी रुला देता है,

मोहब्बत के दुश्मन को भी

आशिक बना देता है।

कुछ लोग तुले हैं दुनिया मिटाने पर,

पर ये मोहब्बत की लौ जला देता है।

उतार देता है चाँद-सितारों को जमीं पर,

मुरौवत का प्रसून खिला देता है।

चेहरा नहीं उतरने देता

धरती-आसमां का,

रुआँसा चेहरा सजा देता है।

करता है वतन की खिदमत,

करता नहीं सियासत,

यही इसकी है इबादत।

फोटोग्राफर के हाथ में

होती है बड़ी ताकत।

 

ये अपने सीधे-सादे चित्रों से

सबको चाैंका देता है,

नदी को नहर और

नहर को नदी बना सकता है,

लहलहाते खेतों को बंजर

और बंजर खेतों में

लहलहाती फसल दिखा सकता है,

ये मोर के सिर पर शुतुरमुर्ग

और शुतुरमुर्ग के सिर पे मोर

दिखा सकता है।

ये सूरज को फूँक मारकर,

बुझते शक्ल में दिखा सकता है।

दरीचे से चाँद को कमरे में बैठा सकता है,

ये कांच के बिखरे ख्वाब को

दुनिया को दिखा सकता है,

ये किसी बिलखते आदमी के आंसू का

फांक और उसकी वजनी साँस को

चित्र में दिखा सकता है।

ये बर्फ के तराजू पर धूप को

तौल सकता है।

ताजी या बासी हवा की

परछाई बना सकता है।

और उस हवा की सींग पर

किसी पहलवान का

सूखता लंगोटा

लहरा सकता है,

और ये समुन्दर के बदन को

कश्ती के ऊपर

लाद सकता है।

ये उतार सकता है नभ को

सीढ़ियों पर और पर्वतों को

चलता दिखा सकता है।

ये सूखे पानी की लकीरों से

तालाब को भर सकता है लबालब,

और मच्छर की मूँछ पर

ढोते पहाड़ दिखा सकता है।

वहीं हाथियों से भिड़ती

चिटियों को घोड़ों पे सवार

दिखा सकता है।

ये उबलते लावों की

बहती नदी बना सकता है।

जलती बस्ती की जगह

जलता चूल्हा दिखा सकता है।

यह बगावत को इबादत में

बदल सकता है।

ये वक्त को चूसकर

लम्हों का बगीचा महका सकता है।

समुन्दर को एक कतरे में

और कतरे को समन्दर में

बदल सकता है।

करता नहीं शरारत

बल्कि बरसती है

देश-दुनिया की इसपे इनायत,

और करता है राष्ट्र की खिदमत।

फोटोग्राफर के हाथ में

होती है बड़ी ताकत।

फोटोग्राफर के हाथ में

होती है बड़ी ताकत।।


Back to top button