जवाबदेही | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©नीरा परमार
जब
जब–
तुम्हारे
पॉलिश लगे
चमचमाते
जूते-चप्पल–
अपनी
कारोबारी
व्यस्त दुनिया का
घिस
फटे -पुराने होकर
मेरी
राँपी का दरवाजा खटखटाते हैं ;
सच जानो
मेरी
बेबस, कराहती
चमरौंधे,
जूते-चप्पलों की
ठोकरों का
तड़पता इतिहास,
दबी राख में
तुम्हारे
जर्जर
जूते-चप्पल पर
पड़ी हुई
मेरी
माँगती है
हिसाब
जवाब देना होगा
देना होगा
जवाब!!
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