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दागे-ए –जिगर | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©बिजल जगड

परिचय- मुंबई, घाटकोपर


 

 

क्या क्या हुआ है हमसे जुनूं में न पूछिए,

ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।

 

जन्नत के नजारे हों या दोजख के शरारे,

ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।

 

ये लुत्फ -ए-करम आबाद हूं अपने दम पे,

ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।

 

आजाद हो जाए उनका पैगाम आ जाए,

ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।

 

इतने फरेब खाए, गम नकद खरीद ले आए,

ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।

 

दूर बसाके बस्ती याद है अहद – ए – जुनूं,

ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।

 

फिर हुआ यूं कि हम फ़ज़ा में बिखर गए,

दावेदार बहुत है दागे-ए -जिगर को पूछिए।

 

 

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