दागे-ए –जिगर | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©बिजल जगड
क्या क्या हुआ है हमसे जुनूं में न पूछिए,
ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।
जन्नत के नजारे हों या दोजख के शरारे,
ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।
ये लुत्फ -ए-करम आबाद हूं अपने दम पे,
ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।
आजाद हो जाए उनका पैगाम आ जाए,
ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।
इतने फरेब खाए, गम नकद खरीद ले आए,
ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।
दूर बसाके बस्ती याद है अहद – ए – जुनूं,
ज़िंदा हूं मैं आग जहन्नमकी है न पूछिए।
फिर हुआ यूं कि हम फ़ज़ा में बिखर गए,
दावेदार बहुत है दागे-ए -जिगर को पूछिए।
ये भी पढ़ें: