घरौंदा, अपना बनाती है | ऑनलाइन बुलेटिन
©प्रीति विश्वकर्मा, ‘वर्तिका’
परिचय- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश.
दूर – दूर तक उड़ती,
तिनके – तिनके खोजती फ़िरती
चिलचिलाती धूप में,
इधर से उधर भटकती
एक एक तिनका चुनकर,
अपने मुंह में दबाती है,,
ना जाने कितनी दूर से,
फ़िर उड़कर आती है,,,
कुछ इस कदर झूझकर,
नन्ही चिड़िया,
घरौंदा, अपना बनाती है
बिना हाथ पैरों के,
अपनी चोंच से,
तिनके – तिनके फ़ंसाती है
एक एक तिनके को,
बड़े सलीके से लगाती है
कुछ इस कदर झूझकर,
नन्ही चिड़िया,
घरौंदा, अपना बनाती है
लहराती हरयाली पर,
या गिरे पेड़ की डाली पर,
कभी खाली पड़े खंडहर में,
या बसे आलिशान महलों में,
चुपके से आकर,
घर अपना बसा लेती है।
खुले आसमान के नीचे,
अपनें अंडे या बच्चों को,
अपने पंखॊं से छुपाती है ।
कुछ इस कदर नन्ही चिड़िया,
घरौदा, अपना बनाती है ।
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