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मोर का हाल हे | Newsforum

©राजेश कुमार मधुकर (शिक्षक), कोरबा, छत्तीसगढ़


 

तोला कइसे बतावव मोर का हाल हे

निचट कंगाली म गुजरत ये साल हे

बिना कछु बुता काम जी के जंजाल हे

तोला नई पता इहा मोर हाल बेहाल हे

 

रोज खाये बर माचथे घर म भूचाल हे

तोला कइसे बतावव मोर का हाल हे

 

सब पूछते त कहे ल परथे बने हाल हे

कइसे चलही जिनगी कठिन सवाल हे

चारों कोती बीमारी के फइले जाल हे

अपन घर म रहाई हर हमर बने ढाल हे

 

रोज खाये बर माचथे घर म भूचाल हे

तोला कइसे बतावव मोर का हाल हे

 

अइसना दुर्दशा ल देख जीव हर जलत हे

रोजी रोटी नई कमायेव अडबड खलत हे

बड़ दिन होगे हे कछु काम नई चलत हे

भूख म लईका मन अपन हाथ मलत हे

 

रोज खाये बर माचथे घर म भूचाल हे

तोला कइसे बतावव मोर का हाल हे

 

बड़ बिपदा म हमर दिन – रात कटत हे

कछु खाये बर दे-दे बाबू कहिके रटत हे

जिनगी के करिया बादर हर नई छटत हे

देखके लईका के करलाई छाती फटत हे

 

रोज खाये बर माचथे घर म भूचाल हे

तोला कइसे मैं बतावव मोर का हाल हे …


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