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फर्क मुझको नहीं पड़ता | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

ये दुनिया भूल जाए तो फर्क मुझको नहीं पड़ता,

मुझे कोई ना बुलाए तो फर्क मुझको नहीं पड़ता,

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दीया हूँ काम है मेरा रात भर रोशनी करना,

मुसाफिर ना भी आए तो फर्क मुझको नहीं पड़ता,

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गुल मुरझा गए जो फिर नहीं खिलते बहारों में,

अब कोई मुस्कुराए तो फर्क मुझको नहीं पड़ता,

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मतलब निकलने पर भूल जाते हैं लोग अक्सर,

नज़र तू भी चुराए तो फर्क मुझको नहीं पड़ता,

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खुदा ने दिल बनाया है मेरा क्या संगेमरमर से,

कोई आँसू बहाए तो फर्क मुझको नहीं पड़ता,

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मेरे आवारा शेरों को पिरोकर एक धागे में,

गज़ल कोई बनाए तो फर्क मुझको नहीं पड़ता,

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